जीवन के पल

जीवन के

कितने पल हैं

कोई न जाने।

कर्म कैसे-कैसे किये

कितने अच्छे

कितने बुरे

कौन बतलाए।

समय बीत जाता है

न समझ में आता है

कौन समझाये।

सोच हमारी ऐसी

अब आपको

क्या-क्या बतलाएं।

न थे, न हैं, न रहेंगे,

जानते हैं

तब भी मन

चिन्तन करता है हरपल,

पहले क्या थे,

अब क्या हैं,

कल क्या होंगे,

सोच-सोच मन घबराये।

जो बीत गया

कुछ चुभता है

कुछ रुचता है।

जो है,

उसकी चलाचल

रहती है।

आने वाले को

कोई न जाने

बस कुछ सपने

कुछ अपने

कुछ तेरे, कुछ मेरे

बिन जाने, बिन समझे

जीवन

यूं ही बीता जाये।