इन्द्रधनुष-सी   ज़िन्दगी

प्रतिदिन निरखती हूँ

आकाश को

भावों से सराबोर

कभी मुस्कुराता

कभी खिल-खिल हँसता

कभी रूठता-मनाता

सूरज, चंदा, तारों संग खेलता

कभी मुट्ठी में बाँधता कभी छोड़ता।

बादलों को अपने ऊपर ओढ़ता

फिर बादलों की ओट से

झाँक-झाँक देखता।

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आकाश में बिखरे रंगों से

कभी मुलाकात की है आपने?

मेरे मन में अक्सर उतर आते हैं।

गिन नहीं पाती, परख नहीं पाती

बस हाथों में लिए

निरखती रह जाती हूँ।

आकाश से धरा तक बरसते

चाँद-तारों संग गीत गाते

बादलों में उलझते

दिन-रात, सांझ-सवेरे

नवीन आकारों में ढलते

पल-पल, हर पल रूप बदलते

वर्षा की रिमझिम बूँदों से झांकते।

पत्तों पर लहराती

ओस की बूँदों के भीतर

छुपन-छुपाई खेलते।

.

और फिर

सूरज की किरणों से झांकती

रिमझिम बारिश के बीच से

रंगों के बनते हैं भंवर

जिनमें डूबता-उतरता है मन

आकाश में लहराते हैं

लहरिए सात रँग।

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इन रँगों को अपनी आँखों से

मन के भीतर तक ले जाती हूँ

और इस तरह

इन्द्रधनुष-सी रंगीन

हो जाती है ज़िन्दगी।