ऐसी ही है ज़िन्दगी
पौधे भी बड़े अजीब हुआ करते हैं
कुछ सदाबहार
कुछ मौसमी और कुछ
अपने मन से जिया करते हैं।
जब चाहा खिल जाते हैं
जब चाहा मुॅंह छुपाकर
बैठ जाते हैं।
किसी को
प्रतिदिन, ढेर-सा पानी चाहिए
कोई बंजर-सी भूमि में ही
खिल-खिल जाते हैं।
कई बिना फूलों के ही
मुस्कुरा-मुस्कुराकर
दिल मोह ले जाते हैं।
कोई
दिन की चाहत लिए खिलता है
और कोई
रात में गुनगुनाहट बिखेरता है
कहीं झर-झर-झरते पल्ल्व
रंग-बिरंगी दुनिया
सजा जाते हैं।
कहीं ज़रा-सा बीज बोते ही
आकाश छू जाते हैं
और कई सालों-साल लगा देते हैं।
धरा का मोह छूटता नहीं
गगन की आस छोड़ता नहीं।
ऐसी ही है ज़िन्दगी।