यह वह मेरा सूरज तो नहीं

यह वह सूरज तो नहीं

जिसकी मैं बात किया करती थी।

यह वह सूरज भी नहीं

जो अक्सर

मेरे सपनों में आया करता था।

यह वह सूरज तो नहीं

जो मुझे राह दिखाया करता था।

यह वह सूरज भी नहीं

जो मेरी राहें आलोकित

किया करता था।

यह वह सूरज भी नहीं

जिस पर मैं विश्वास किया करती थी।

यह वह सूरज भी नहीं

जो मुझे रोज़ मिला करता था।

 

गली-गली ढूंढ रही

मेरा सूरज कहां गया।

यह सूरज तो राहों से भटक गया।

अंधेरे-रोशनी की

पहचान भूल गया।

जहां रोशनी चाहिए

वहां अंधेरा पसरता है,

किसी के घर में

झांके बिना ही निकल जाता है,

और कहीं आग बरसाता है।

मेरा सूरज तो ऐसा नासमझ नहीं था।

 

कल मिला बड़े दिनों के बाद।

पूछा मैंने कहाँ गये,

ऐसे कैसे हो गये।

 

सूरज मुस्काया,

समय के साथ चलना सीख।

नज़र बदल, सड़क बदल

कुछ कांटे बिछा, कुछ ज़हर उगल।

न अंधेरे से डर

न रोशनी की चाहत रख

जो मिले, उसे निगल

आगे बढ़, सबकी खींच।

न आस रख, न विश्वास रख

न जी का जंजाल रख।

सबको तोड़, अपने को जोड़

बस ऐसा जीवन जी

इशारा कर दिया मैंने

शेष अपनी बुद्धि लगा

और मस्त जीवन जी।