पशु-पक्षियों का आयात-निर्यात

अभयारण्य

बड़े होते जा रहे हैं

हमारे घर छोटे।

हथियार

ज़्यादा होते जा रहे हैं

प्रेम-व्यवहार ओछे।

पढ़ा करते थे

हम पुस्तकों में

प्रकृति में पूरक हैं

सभी जीव-जन्तु

परस्पर।

कौन किसका भक्षक

कौन किसका रक्षक

तय था सब

पहले से ही।

किन्तु

हम मानव हैं

अपने में उत्कृष्ट,

प्रकृति-संचालन को भी

ले लिया अपने हाथ में।

पहले वन काट-काटकर

घर बना लिए

अब घरों में

वन बना रहे हैं

पौधे तो

रोपित कर ही रहे थे

अब पशु-पक्षियों के

आयात-निर्यात करने का

समय आ गया है।