कैसे कहूॅं
कैसे कहूॅं वो क्या निशानी दे गया
जाते-जाते बस बदनामी दे गया।
हम तो सारी जिन्दगी
प्यार के अफ़साने सुनाते रहे
वो हमें पुरस्कार बेईमानी दे गया।
बात तो कुछ ज़्यादा न थी
पर वो लोगों को पढ़ने के लिए
एक मजे़दार कहानी दे गया।
हम तो हंस-हंसकर जी रहे थे
लेकिन वो शेष जीवन की हैरानी दे गया।
यादों में उसकी हम अब भी रहते हैं
पर मेरी जीने की तमन्ना छीन रवानी दे गया।