क्या समाज ने अंतर्जातीय विवाह को स्वीकार कर लिया है
हमारा समाज बहुत विखण्डित है। हमारे समाज में लाखों-लाखों जातियाॅं हैं। लोगों की सोच में परिवर्तन शिक्षा, आर्थिक स्थिति, निवास-स्थान एवं कार्य-क्षेत्र पर बहुत निर्भर करता है। आज भी हम लोग जाति की सोच से बाहर नहीं निकल पाये। आज भी जब कोई हम लोगों से नाम पूछता है तो हम बिना जाति के नाम नहीं बताते। और यदि केवल नाम बताएॅं तो सामने वाले की आॅंखों में एक प्रश्नचिन्ह होता है कि अगले ने पता नहीं क्यों ‘‘जात’’ नहीं बताई। 140 करोड़ जनसंख्या वाले हमारे आस-पास, परिचितों, सम्बन्धियों में अन्तर्जातीय विवाह हो रहे हैं, और उन्हें मान्यता मिल जाती है अथवा विवशता में दे दी जाती है। किन्तु क्या यह स्थिति पूरे देश में है ? सभी जातियों, प्रान्तों, गांवों में है ? शायद , नहीं।
वास्तविकता यह है कि हम आज भी उन्हीं रूढ़ियों में जी रहे हैं। किन्तु अन्तर्जातीय विवाह का विरोध करने के और भी अनेक कारण हैं।
हमारे देश में जाति, स्थान, वर्ग, प्रदेश, गांव, आदि के अलग-अलक रीति-रिवाज़, परम्पराएॅं, लेन-देन, खान-पान, भाषा-भिन्नताएॅं हैं जिस कारण परिवारों में सामंजस्य बहुत कठिन होता है। इस कारण आज भी लोग अन्तर्जातीय विवाह करने में संकोच करते हैं।
अतः मेरे विचार में हमारे समाज ने अन्तर्जातीय विवाह को स्वीकार नहीं किया है।