अच्छा लगता है भूलना

ज़िन्दगी

कोई छपी हुई

चित्र-कथा तो नहीं

कि जब चाहा

स्मृतियों के पृष्ठ

उलट-पुलट लिए

और पढ़ते रहे

अगला-पिछला।

समस्या यह

कि जो भूलना चाहते हैं

वह तो

स्मृति-पटल पर

पत्थरों पर कुरेदी गई

लिपि-सा रह जाता है

और जो याद रहना चाहिए

वह रेत पर फैले शब्दों-सा

बिखर-बिखर जाता है।

लेकिन फिर भी

अच्छा लगता है भूलना

ज़िन्दगी मे बहुत कुछ,

चाहे सारी दुनिया कहे

बुढ़ा गये हैं ये

इन्हें

अब कुछ याद नहीं रहता।