अतीत का मोह

अतीत की तहों में

रही होंगी कभी

कुछ खूबसूरत इमारतें

गगनचुम्बी मीनारें

स्वर्ण-रजत से मढ़े सिंहासन

धवल-जल-प्रवाह

मरमरी संगमरमर पर

संगीत की सुमधुर लहरियाँ ।

हमारी आंखों पर चढ़ा होता है

उस अनदेखे सौन्दर्य का

ऐसा परदा

कि हम वर्तमान में

जीना ही भूल जाते हैं।

और उस अतीत के मोह में

वर्तमान कहीं भूत में चला जाता है

और सब गड्मगड् हो जाता है।

भूत और वर्तमान के बीच उलझे

लौट-लौटकर देखते हैं

परखते हैं

और उस अतीत को ही

संजोने के प्रयास में लगे रहते हैं।

अतीत

चाहे कितना भी सुनहरा हो

काल के गाल में

रिसता तो है ही

और हम

अतीत के मोह से चिपके

विरासतें सम्हालते रह जाते हैं

और वर्तमान गह्वर में

डूबता चला जाता है।

खुदाईयों से मिलते हैं

काल-कलवित कंकाल,

हज़ारों-लाखों वर्ष पुरानी वस्तुएँ

उन्हें रूपाकार देने में

सुरक्षित रखने में

लगाते हैं अरबों-खरबों लगाते हैं

और वर्तमान के लिए

अगली पीढ़ी का

मुहँ ताकने लगते हैं।