स्थायी समाधान की बात मत करना
हर रोज़ नहीं करते हम
चिन्ता किसी भी समस्या की,
जब तक विकराल न हो जाये।
बात तो करते हैं
किन्तु समाधान ढूँढना
हमारा काम नहीं है।
हाँ, नौटंकी हम खूब
करना जानते हैं।
खूब चिन्ताएँ परोसते हैं
नारे बनाते हैं
बातें बनाते हैं।
ग्रीष्म ऋतु में ही
हमें याद आता है
जल संरक्षण
शीत ऋतु में आप
स्वतन्त्र हैं
बर्बादी के लिए।
जल की ही क्यों,
समस्या हो पर्यावरण की
वृक्षारोपण की बात हो
अथवा वृक्षों को बचाने की।
या हो बात
पशु-पक्षियों के हित की
याद आ जाती है
कभी-कभी,
खाना डालिए, पानी रखिए,
बातें बनाईये
और कोई नई समस्या ढूँढिये
चर्चा के लिए।
बस
स्थायी समाधान की बात मत करना।