सावन के दिन
सावन के दिन आ गये मन डर रहा न जाने क्या होगा
बीते वर्षों की यादें कह रहीं अब क्या नया प्रलय होगा
बड़े-बड़े भवन ढह गये थे, शहर-शहर डूब रहेे थे,
सड़कों पर नाव चली थी, पर्वत मिट्टी बन बह गये थे
घर-घर पानी था पर पीने के पानी को तरस रहेे थे
गली-गली भराव होगा, सड़कों पर फिर से जाम होगा
बिजली जब-तब गुल रहेगी, जाने कैसे काम होगा
गढ्ढों में गाडियॉं फ़ंसेंगी, जाने कितना नुकसान होगा
निगम के कान ही नहीं तो जूॅं कैसे रेंगेगी वहॉं
वे तो घर बैठे चारों प्रहर उनका तो इंतज़ाम होगा