भीड़ पर भीड़-तंत्र
एक लाठी के सहारे
चलते
छोटे कद के
एक आम आदमी ने
कभी बांध ली थी
सारी दुनिया
अपने पीछे
बिना पुकार के भी
उसके साथ
चले थे
लाखों -लाखों लोग
सम्मिलित थे
उसकी तपस्या में
निःस्वार्थ, निःशंक।
वह हमें दे गया
एक स्वर्णिम इतिहास।
आज वह न रहा
किन्तु
उसकी मूर्तियाँ
हैं हमारे पास
लाखों-लाखों।
कुछ लोग भी हैं
उन मूर्तियों के साथ
किन्तु उसके
विचारों की भीड़
उससे छिटक कर
आज की भीड़ में
कहीं खो गई है।
दीवारों पर
अलंकृत पोस्टरों में
लटक रही है
पुस्तकों के भीतर कहीं
दब गई है।
आज
उस भीड़ पर
भीड़-तंत्र हावी हो गया है।
.
अरे हाँ !
आज उस मूर्ति पर
माल्यार्पण अवश्य करना।