समझौता

हेलो बच्चों ! कैसे हो ?

हम ठीक हैं आंटी, आप कैसी हैं?

अक्सर यह वार्तालाप मेरे और उन दोनों बच्चों के बीच होता रहता था। अमित और अर्पित दोनों चचेरे भाई थे। एक ही स्कूल में पढ़ते थे। पड़ोस में ही रहते थे, और बाहर मैदान में खेलते, साईकल पर घूमते  मुझे अक्सर मिल जाया करते थे।

कुछ दिन बाद मेरा ध्यान गया कि आजकल दोनों ही दिखाई नहीं दे रहे हैं और एक-दो बार दिखाई दिये तो अलग-अलग।

उस दिन अर्पित मिल गया। मैंने जानना चाहा कि आजकल साथ क्यों नहीं दिखाई दे रहे। तो उसने बताया कि दोनों परिवारों में ज़मीन को लेकर झगड़ा हो गया है, शायद केस भी किया है आपस में पापा ने, हमें भी मिलने और आपस में खेलने से मना कर दिया है। साथ नहीं जाने देते।

अर्थात, बड़ों के झगड़ों में बच्चों का बालपन भी छिन रहा था। वे भी अब आपस में बात नहीं करते थे और खेलते भी नहीं थे। स्कूल भी अलग-अलग जाने लगे थे। मुझे जब भी मिलते उदास लगते।

एक दिन स्कूल से लौटते हुए मुझे दोनों मिल गये। रुककर मुझसे बात करने लगे कि आंटी आप ही समझाओ न हमारे मम्मी-पापा को। मैंने उन्हें समझाया कि यह उनका पारिवारिक मामला है और कोई बाहर का इस बारे में उनसे बात नहीं कर सकता। किन्तु मेरे दिमाग में एक योजना आई और मैंने दोनों बच्चों से कहा कि मैं तुम्हें एक योजना बताती हूॅं हो सकता है मामला सुलझ जाये। बच्चे मान गये।

 मेरी योजना के अनुसार अब दोनों अपने-अपने घर में अपने माता-पिता के साथ जायदाद और मुकदमे की बात करने लगते।  बार-बार पूछते कि पापा, बताओ इस लड़ाई में हमें कितने पैसे मिलेंगे। आप मुझे कार लेकर दोगे क्या। मेरा भी अपना मकान बन जायेगा क्या, मैं भी अर्पित को अपने घर में नहीं घुसने दूंगा। यही बातें अमित भी अपने घर में कहता। माता-पिता उन्हें डांटते कि बच्चो यह बड़ों की बातें हैं तुम इन मामलों में मत बोला करो।  बच्चों का उत्तर होता कि पापा बात तो पूरे घर की ही होती है, हम छोटे हैं तो क्या हुआ, घर तो हमारा भी है और हम आपके बच्चे हैं तो हमें तो आज से ही यह सब समझ जाना चाहिए। कल को मेरा भाई भी तो मुझसे लड़ सकता है। तो आज से ही आप मुझे सब सिखाओ।। दोनों घरों में रोज़ शाम को बच्चे खूब हल्ला करते और माता-पिता को खूब परेशान। न पढ़ाई न खेल और न ही कोई काम। बस यही बातें पूछते और करते रहते।  स्कूल में भी वे अपने दोस्तों के साथ बैठकर जायदाद,  पैसे और मुकदमों की बातें करते रहते। जल्दी ही स्कूल से दोनों ही घरों में बच्चों की शिकायतें आने लगीं।

परिणाम वही हुआ जो होना था। दोनों ही परिवारों की समझ में आने लगा कि हमारी धन की लालसा हमारी अगली पीढ़ी को भी बरबाद कर देगी, जो बात बैठकर सुलझाई जा सकती है उसे कोर्ट-कचहरी में न खींचा जाये, साथ ही धन और समय की बरबादी।

दोनों ही परिवार साथ आये, धन का लालच छोड़ा और बड़ों की सलाह से समझौता करके एक हो गये।