छन्दमुक्त कविताएॅं
मैं किसी विवादास्पद विषय पर लिखने अथवा प्रतिक्रिया से बचकर चलती हूं। किन्तु कभी-कभी कुछ चुभ भी जाता है। फ़ेसबुक पर हम सब लिखने के लिए स्वतन्त्र हैं। किन्तु इतना भी न लिखें कि सीधे-सीधे अनर्गल आक्षेप हों। कुछ अति के महान लेखक यहां विराजमान हैं। सैंकड़ों मंचों के सदस्य हैं, सैंकड़ों सम्मान प्राप्त हैं। सुना है और उनकी बातों से लगता है कि वे महान छन्द विधाओं में लिखते हैं और उनसे बड़ा कोई नहीं। इस कारण वे सामूहिक रूप से किसी का भी, विशेषकर महिलाओं का अपमान कर सकते हैं। आपकी मित्र-सूची में भी होंगे, पढ़िए उनका लेख और अपने विचार दीजिए। मुझे लगता है इन महोदय को बड़े दिन से कोई सम्मान नहीं मिला अथवा किसी काव्य समारोह का निमन्त्रण तो भड़ास तो कहीं निकालनी ही थी। और ऐसे महान छन्दलेखक की भाषा! वाह!!! वे इतने महान हैं कि वे तय करेंगे कि कौन कवि है और कौन कवि नहीं।
वैसे वाह-वाही पाने और हज़ारों लाईक्स पाने का भी यह एक तरीका आजकल फ़ेसबुक पर चल रहा है कि आप जितना ही अनर्गल लिखेंगे उतने ही लाईक्स मिलेंगे।
वे लिखते हैं
“आज अगर यह मुक्त छंद वाली कविता या उल जुलूल बेसिर पैर के गद्य को कविता की श्रेणी से निकाल दिया जाय तो 90 प्रतिशत कवि इस सोशल मीडिया से गायब हो जायेंगे जिनमें 80 प्रतिशत महिला कवियत्री औऱ बाकी के पुरुष कवि कहलाने वाले लोग हैं ।”
छंद मुक्त लेखकों या अगड़म बगड़म गद्य को इधर इधर करके कविता नाम देने वाले स्त्री पुरुषों को तो मैं कवियों की श्रेणी में रखता ही नहीं ।
आप ऐसे समझिये कि जिसको कुछ नहीं आता, वह छंदमुक्त के नाम से लेखन कर कवि बन जाता है ।
जैसे जिसको कुछ नहीं आता या जिसमें कोई गुण नहीं, तो उससे कहा दिया जाता है कि चलो तुम laterine ही साफ कर दो ।“”
मैं मान लेती हूं कि छन्दमुक्त लिखने वाले कवि नहीं हैं तो सबसे पहले तो निराला, अज्ञेय, मुक्तिबोध, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, त्रिलोचन, शिव मंगल सिंह, केदारनाथ सिंह, धूमिल, कुमार विमल, गिरिजाकुमार माथुर आदि अनेक कवियों को हिन्दी साहित्य से बाहर कर देना चाहिए।