सत्य के भी पांव नहीं होते

कहते हैं

झूठ के पांव नहीं होते

किन्तु मैंने तो

कभी सत्य के पांव

भी नहीं देखे।

झूठ अक्सर सबका

एक-सा होता है

पर ऐसा क्यों होता है

कि सत्य

सबका अपना-अपना होता है।

किसी के लिए

रात के अंधेरे ही सत्य हैं

और कोई

चांद की चांदनी को ही

सत्य मानता है।

किसी का सच सावन की घटाएं हैं

तो किसी का सच

सावन का तूफ़ान

जो सब उजाड़ देता है।

किसी के जीवन का सत्य

खिलते पुष्प हैं

तो किसी के जीवन का सत्य

खिलकर मुर्झाते पुष्प ।

किन्तु झूठ

सबका एक-सा होता है,

इसलिए

आज झूठ ही वास्तविक सत्य है

और यही सत्य है।