मेरे देश को रावणों की ज़रूरत है

मेरे देश को रावणों की ज़रूरत है।

चौराहे पर रीता, बैठक में मीता

दफ्तर में नीता, मन्दिर में गीता

वन वन सीता,

कहती है

रावण आओ, मुझे बचाओ

अपहरण कर लो मेरा

अशोक वाटिका बनवाओ।

 

ऋषि मुनियों की, विद्वानों की

बलशाली बाहुबलियों की

पितृभक्तों-मातृभक्तों की

सत्यवादी, मर्यादावादी, वचनबद्धों की

अगणित गाथाएं हैं।

वेद-ज्ञाता, जन-जन के हितकारी

धर्मों के नायक और गायक

भीष्म प्रतिज्ञाधारी, राजाज्ञा के अनुचारी

धर्मों के गायक और नायक

वचनों से भारी।

कर्म बड़े हैं, धर्म बड़े हैं

नियम बड़े हैं, कर्म बड़े हैं।

नाक काट लो, देह बांट लो

संदेह करो और त्याग करो।

वस्त्र उतार लो, वस्त्र चढ़ा दो।

श्रापित कर दो, शिला बना दो।

मुक्ति दिला दो। परीक्षा ले लो।

कथा बना लो।चरित्र गिरा दो।

 

देवी बना दो, पूजा कर लो

विसर्जित कर दो।

हरम सजा लो, भोग लगा लो।

नाच नचा लो, दुकान सजा लो।

भाव लगा लो। बेचो-बेचो और खरीदो।

बलात् बिठा लो, बलात् भगा लो।

मूर्ख बहुत था रावण।

जीत चुका था जीवन ,हार चुकी थी मौत।

विश्व-विजेता, ज्ञानी-ध्यानी

ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी।

 

न चेहरा देखा, न स्पर्श किया।

पत्नी बना लूं, हरम सजा लूं

दासी बना लूं

बिना स्वीकृति कैसे छू लूं

सोचा करता था रावण।

मूर्ख बहुत था रावण।

 

सुरक्षा दी, सुविधाएं दी

इच्छा पूछी, विनम्र बना था रावण।

दूर दूर रहता था रावण।

मूर्ख बहुत था रावण।

 

धर्म-विरोधी, काण्ड-विरोधी

निर्मम, निर्दयी, हत्यारा,

असुर बुद्धि था रावण।

पर औरत को औरत माना

मूर्ख बहुत था रावण।

 

अपमान हुआ था एक बहन का

था लगाया दांव पर सिहांसन।

राजा था, बलशाली था

पर याचक बन बैठा था रावण

मूर्ख बहुत था रावण।