मंजी दे जा मेरे भाई

भाई मेरे

मंजी दे जा।

बड़े काम की है यह मंजी।

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सर्दी के मौसम में,

प्रात होते ही

यह मंजी

धूप में जगह बना लेती है।

सारा दिन

धीरे-धीरे खिसकती रहती है

सूरज के साथ-साथ।

यहीं से

हमारे दिन की शुरूआत होती है,

और यहीं शाम ढलती है।

पूरा परिवार समा जाता है

इस मंजी पर।

कोई पायताने, कोई मुहाने,

कोई बाण पर, कोई तान पर,

कोई नवार पर,

एक-दूसरे की जगह छीनते।

बतंगड़बाजी करते ]

निकलता है पूरा दिन

इसी मंजी पर।

सुबह का नाश्ता

दोपहर की रोटी,

दिन की झपकी,

शाम की चाय,

स्वेटर की बुनाई,

रजाईयों की तरपाई,

कुछ बातचीत, कुछ चुगलाई,

पापड़-बड़ियों की बनाई,

मटर की छिलकाई,

साग की छंटाई,

बच्चों की पढ़ाई,

आस-पड़ोस की सुनवाई।

सब इसी मंजी पर।

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भाई मेरे, मंजी दे जा।

दे जा मंजी मेरे भाई।