भीड़-तन्त्र

आज दो किस्से हुए।

एक भीड़-तन्त्र स्वतन्त्र हुआ।

मीनारों पर चढ़ा आदमी

आज मस्त हुआ।

28 वर्ष में घुटनों पर चलता बच्चा

युवा हो जाता है,

अपने निर्णय आप लेने वाला।

लेकिन उस भीड़-तन्त्र को

कैसे समझें हम

जो 28 वर्ष पहले दोषी करार दी गई थी।

और आज पता लगा

कितनी निर्दोष थी वह।

हम हतप्रभ से

अभी समझने की कोशिश कर ही रहे थे,

कि ज्ञात हुआ

किसी खेत में

एक मीनार और तोड़ दी

किसी भीड़-तन्त्र ने।

जो एक लाश बनकर लौटी

और आधी रात को जला दी गई।

किसी और भीड़-तन्त्र से बचने के लिए।

28 वर्ष और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।

यह जानने के लिए

कि अपराधी कौन था,

भीड़-तन्त्र तो आते-जाते रहते हैं,

परिणाम कहां दे पाते हैं।

दूध की तरह उफ़नते हैं ,

और बह जाते हैं।

लेकिन  कभी-कभी

रौंद भी दिये जाते हैं।