पुरानी रचनाओं का करें पिष्ट-पेषण
पुरानी रचनाओं का कब तक करें पिष्ट-पेषण सुहाता नहीं
रोज़ नया क्या लिखें हमें तो समझ कुछ अब आता नहीं
कवियों की नित-नयी रचनाएं पढ़-पढ़कर मन कुढ़ता है
लेखनी न चले तो अपने पर ही दया का भाव भाता नहीं
पुरानी रचनाओं का कब तक करें पिष्ट-पेषण सुहाता नहीं
रोज़ नया क्या लिखें हमें तो समझ कुछ अब आता नहीं
कवियों की नित-नयी रचनाएं पढ़-पढ़कर मन कुढ़ता है
लेखनी न चले तो अपने पर ही दया का भाव भाता नहीं