जिए एक नई विधा छन्दमुक्त ग़ज़ल

आज ग़ज़ल लिखने के लिए एक मिसरा मिला

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जाम नजरों से मुझको पिलाओ न तुम

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अब हम गज़ल तो लिखते नहीं

तो कौन कहता है कि मिसरे पर छन्दमुक्त रचना नहीं लिखी जा सकती

लीजिए एक नई विधा छन्दमुक्त ग़ज़ल

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जाम नजरों से मुझको पिलाओ न तुम

कुछ बढ़िया से कट ग्लास लेकर आओ तुम।

अब तो लाॅक डाउन भी खुल गया,

गिलास न होने के

बहाने न बनाओ तुम।

गर जाम नज़रों से पिलाओगे,

तो आंख से आंख  कैसे मिलाओगे तुम।

किसी को टेढ़ी नज़र से देखने

का मज़ा कैसे पाओगे तुम।

आंखों में आंखें डालकर

बात करने का मज़ा ही अलग है,

उसे कैसे छीन पाओगे तुम।

नज़रें फे़रकर कभी निकलेंगे

तो आंख से मोती कैसे लुढ़काओगे तुम।

कभी आंख झुकाओगे,

कभी आंख ही आंख में शरमाओगे,

कभी आंख बन्द कर,

कैसे फिर सपनों में आओगे तुम।

और कहीं नशेमन में आंख मूंद ली

तो आंसुओं की जगह

बह रहे सोमरस को दुनिया से

कैसे छुपाओगे तुम।