चिडि़या मुस्कुराई
चिडि़या के उजड़े
घोंसले को देखकर
मेरा मन द्रवित हुआ
पूछा मैंने चिडि़या से
रोज़ तिनके चुनती हो
रोज़ नया घर बनाती हो
आंधी के एक झोंके से
घरौंदा तुम्हारा उजड़ जाता है
तिनका-तिनका बिखर जाता है
कभी वर्षा, कभी धूप
कभी पतझड़
कभी इंसान की करतूत।
कहां से इतना साहस पाती हो,
न जाने कहां
दूर-दूर से भोजन लाती हो
नन्हें -नन्हें बच्चों को बचाती हो
उड़ना सिखलाती हो
और अनायास एक दिन
वे सच में ही उड़ जाते हैं
तुम्हारा दिल नहीं दुखता।
- * * *
चिडि़या !!
मुंह में तिनका दबाये
एक पल के लिए
मेरी ओर देखा
मुस्कुराई
और उड़ गई
अपना घरौंदा
पुन: संवारने के लिए।