खून का असली रंग

हमारे यहाँ

रगों में बहते खून की

बहुत बात होती है।

किसी का खून खानदानी,

किसी का उजला,

किसी का काला

किसी का अपना

और किसी का पराया।

तब आसानी से

कह देते हैं

अपना तो खून ही

ख़राब निकला।

और

ऐसा नीच खून

तो हमारा खून

हो ही नहीं सकता।

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लेकिन

काश! हम समझ पाते

कि रगों में बहते खून का

कोई रंग नहीं होता

खून का रंग तब होता है

जब वह किसी के काम आये।

फिर अपना हो या पराया,

खानदानी हो या काला,

खून का असली रंग

तभी पहचान में आता है।

लाल, नीला या काला

होने से कभी

कोई फ़र्क नहीं पड़ता।