कहते हैं हाथ की है मैल रूपया
जब से आया बजट है भैया, अपनी हो गई ता-ता थैया
जब से सुना बजट है वैरागी होने को मन करता है भैया
मेरा पैसा मुझसे छीनें, ये कैसी सरकार है भैया
देखो-देखो टैक्स बरसते, छाता कहां से लाउं मैया
कहते हैं हाथ की है मैल रूपया, थोड़ी मुझको देना भैया
छल है, मोह-माया है, चाह नहीं, कहने की ही बातें भैया
टैक्स भरो, टैक्स भरो, सुनते-सुनते नींद हमारी टूट गई
मुट्ठी से रिसता है धन, गुल्लक मेरी टूट गई
जब से सुना बजट है भैया, मोह-माया सब छूट गई
सिक्के सारे खन-खन गिरते किसने लूटे पता नहीं
मेरी पूंजी किसने लूटी, कैसे लूटी मुझको यह तो पता नहीं
किसकी जेबें भर गईं, किसकी कट गईं, कोई न जानें भैया
इससे बेहतर योग चला लें, चल मुफ्त की रोटी खाएं भैया