एक तृण छूता है
पर्वत को मैंने छेड़ा
ढह गया।
दूर कहीं से
एक तिनका आया
पथ बांध गया।
बड़ी-बड़ी बाधाओं को तो
हम
यूं ही झेल लिया करते हैं
पर कभी-कभी
एक तृण छूता है
तब
गहरा घाव कहीं बनता है
अनबोले संवादों का
संसार कहीं बनता है
भीतर ही भीतर
कुछ रिसता है
तब मन पर
पर्वत-सा भार कहीं बनता है।