आज़ादी की कीमत
कौन थे वे लोग !
गोलियों से जूझते, फांसी पर झूलते
अंग्रज़ों को ललकारते, भूख प्यास नकारते
देश के लिए जन जन जागते
बस एक सपना लेकर स्वतन्त्र भारत का।
हम कहानियों में पढ़ते हैं, इतिहास में रटते हैं
और उकताकर जल्दी ही भूल जाते हैं।
उनका जुनून, उनका त्याग, और उनका बलिदान।
उनका संघर्ष
हमारी समझ में नहीं आता।
नहीं समझ पाते कि
आ़ज़ादी मिलती नहीं
लेनी पड़ती है
अपने प्राण देकर।
बस कुछ दिन और कुछ तारीखें
याद कर ली हैं हमने।
झंडे उठा लेते हैं, नारे लगा लेते हैं
प्रभात फेरियां निकालते हैं
फूल मालाएं चढ़ाते हैं
और देश भक्ति के कुछ पुराने गीत गा लेते हैं।
श्रद्धांजलि के नाम पर नौटंकी कर जाते हैं।
फिर छुट्टी मनाते हैं।
मौका मिलते ही भ्रष्टाचार को कोसते हैं
नेताओं के नाम पर रोते हैं
झूठ, पाखण्ड , धोखे के साथ जीते हैं
सत्य को नकारते हैं, दूसरों को कोसते हैं
आज़ादी को रोते हैं
लेकिन जब कर्त्तव्य निर्वाह की बात आती है
तो मुंह ढककर सो जाते हैं।
फिर कहते हैं
किस काम की ऐसी आज़ादी
इससे तो अंग्रेज़ों का समय ही अच्छा था।
काश ! हम समझ पाते
घर बैठे मिली आज़ादी के पीछे
कितनी खून की नदियां बही हैं।
सैंकड़ों वर्षों के संघर्ष का अभिमान है ये।
देश के गौरव की रक्षा के लिए
तन मन धन के बलिदान की
एक लम्बी गाथा है ये।
सत्य, निष्ठा और प्रेम की परिभाषा है ये।
सहेजना है हमें इसे।
और यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी
उन वीरों के प्रति
जो जीवन से पहले ही मृत्यु को चुनकर चले गये
हमारे आज के लिए।