आंखें फ़ेर लीं
अपनों से अपनेपन की चाह में
जीवन-भर लगे रहे हम राह में
जब जिसने चाहा आंखें फ़ेर लीं
कहीं कोई नहीं था हमारी परवाह में
अपनों से अपनेपन की चाह में
जीवन-भर लगे रहे हम राह में
जब जिसने चाहा आंखें फ़ेर लीं
कहीं कोई नहीं था हमारी परवाह में