अवसान एक प्रेम-कथा का

अपनी कामनाओं को

मुट्ठी में बांधे

चुप रहे हम

कैसे जान गये

धरा-गगन

क्यों हवाओं में

छप गया हमारा नाम

बादलों में क्यों सिहरन हुई

क्यों पंछियों ने तान छेड़ी

लहरों में एक कशमकश

कहीं भंवर उठे

कहीं सागर मचले

धूमिल-धूमिल हुआ सब

और हम

देखते रह गये

पाषाण बनते भाव

अवसान

एक प्रेम-कथा का।